वक़्त, विज्ञान और मनुष्य का प्रश्न
वक़्त बीतता गया, युग बदलते गए, विज्ञान ने अंतरिक्ष तक अपने पंख फैलाए। लेकिन एक प्रश्न आज भी हमारे सामने जस का तस उपस्थित है — मनुष्य को जीना कैसे चाहिए?
इस प्रश्न का उत्तर तलाशने निकलेंगे तो तकनीक, बाजार और आधुनिकता के शोर में वेदों की, उपनिषदों की, रामायण और महाभारत की आवाज़ अब भी गूंजती है।
प्राचीन ग्रंथ: शब्द नहीं, अनुभव हैं
हमारे प्राचीन ग्रंथ केवल शब्दों के संग्रह नहीं हैं, वे अनुभव हैं — जो समय से परे, चित्त से जुड़े हुए हैं और जिनमें जीवन के वास्तविक सत्य भी हैं।
गीता का अमर संदेश
गीता का एक श्लोक आज भी आत्मा को वैसे ही छूता है, जिसे हजारों वर्ष पहले कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन ने सुना था —
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन..."
यह कोई दार्शनिक जुमला नहीं, आज की भागती दुनिया में मानसिक शांति की कुंजी है। आज की दुनिया में जब सब कुछ ‘रिज़ल्ट’ से जोड़ा जा रहा हो, तब गीता सिखाती है — कर्म करो, संकल्प शुद्ध रखो, फल स्वयं मिलेगा।
रामायण: जीवन का आदर्श
रामायण में श्रीराम का जीवन एक आदर्श की प्रतिमा है — जहाँ हर निर्णय व्यक्तिगत नहीं, बल्कि लोकहितकारी होता है। आज जब समाज आत्मकेंद्रित हो चला है, राम की मर्यादा और त्याग हमें फिर याद दिलाते हैं कि जीवन का उद्देश्य केवल ‘मैं’ नहीं, ‘हम’ भी है।
महाभारत: नैतिक संकटों में मार्गदर्शन
महाभारत की कथा हमें सिखाती है कि सत्य और धर्म के रास्ते सरल नहीं होते।
युधिष्ठिर की दुविधा, अर्जुन के संशय और श्रीकृष्ण की गूढ़ नीति — ये सब हमें आज के नैतिक संकटों में सही निर्णय लेने का साहस देते हैं।
उपनिषद: आत्मा का विज्ञान
उपनिषदों की गहराई में उतरें तो इनमें आत्मा का वह विज्ञान मिलता है, जिसे विज्ञान भी नहीं छू सका है।
"अहं ब्रह्मास्मि", "तत्त्वमसि" जैसे वाक्य केवल पढ़ने के लिए नहीं हैं — बल्कि चेतना की सीढ़ियाँ हैं।
आज जब मनुष्य ‘बाह्य उपलब्धियों’ में उलझा है, उपनिषद उसे ‘अंतर्मन की संतुष्टि’ प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।
अथर्ववेद: प्रकृति के साथ सहअस्तित्व
अथर्ववेद की ऋचाएँ प्रकृति के साथ सहअस्तित्व का पाठ पढ़ाती हैं। वे बताती हैं कि पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, अंतरिक्ष — ये प्रकृति के पंचतत्व हैं, कोई संसाधन नहीं।
जब हम 2025 में जलवायु परिवर्तन से लड़ रहे हैं, तो यह ज्ञान हमें सतत् जीवन की राह दिखाता है।
पुराण: स्मृति, चेतना और संस्कृति
पुराण केवल कथाएँ नहीं हैं — वे स्मृति हैं, चेतना हैं, संस्कृति हैं।
शिव का तांडव, नारद की भक्ति, दुर्गा का विजय — ये केवल धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि भारतीय मानस की प्रतीकात्मक अभिव्यक्तियाँ हैं।
आधुनिकता और प्राचीनता का संगम
आज, जब इंसान चाँद पर बसने की सोच रहा है, तब भी उसे सुख, शांति, रिश्ते, संतुलन और आत्म-साक्षात्कार जैसे प्रश्न उतने ही उलझे हुए लगते हैं जितने पहले थे।
तब समझ में आता है कि — पुरातन ग्रंथ कभी पुराने नहीं होते। उनकी भाषा भले ही संस्कृत हो, पर उनका संदेश आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
जीवन की समझ: दृष्टि और सिद्धांत
ये प्राचीन ग्रंथ हमें जीवन जीने का ढंग नहीं, बल्कि जीवन को समझने की दृष्टि देते हैं।
2025 में भी, इन ग्रंथों की ओर लौटना — पीछे जाना नहीं, बल्कि जीवन के सिद्धांतों को और गहराई से समझना है।
अब समय केवल आगे बढ़ने का नहीं – अपनी जड़ों की ओर लौटने का भी है।