हम प्राचीन ग्रंथ क्यों पढ़ें?

हम प्राचीन ग्रंथ क्यों पढ़ें?
News

हम प्राचीन ग्रंथ क्यों पढ़ें?

जब आप किसी प्राचीन मंदिर में प्रवेश करते हैं— तो दीवारों पर उकेरे गए शिल्प— धूप में गूंजती घंटियाँ— और वह अदृश्य-सी शांति— आपको किसी और ही दुनिया में पहुँचा देती है।

वैसे ही— जब आप वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत और पुराण जैसे ग्रंथों को उठाते हैं— तो आप केवल इतिहास नहीं पढ़ते— बल्कि आप भारत की आत्मा से संवाद करने लगते हैं।

वेद—सृष्टि की पहली ध्वनि हैं। ये अपौरुषेय माने जाते हैं क्योंकि वे— ऋषियों की तपश्चर्या से, ब्रह्मांड की चेतना से— उनके भीतर से फूटे थे। इनमें मंत्र हैं, विज्ञान है, संगीत है, प्रकृति है— और है जीवन का गूढ़ रहस्य।

उपनिषद—जहाँ मौन बोलता है। जहाँ 'तत्त्वमसि' जैसे शब्द— केवल दर्शन नहीं, आत्मसाक्षात्कार हैं। जहाँ प्रश्न पूछना पाप नहीं, साधना होता है। यह ग्रंथ नहीं— ध्यान की यात्रा हैं।

पुराण—जहाँ कथा है, संस्कृति है, भावना है। जहाँ शिव तांडव करते हैं, कृष्ण बंसी बजाते हैं और माँ दुर्गा असुरों का संहार करती हैं। ये कहानियाँ नहीं, संस्कार हैं।

रामायण— कथा नहीं, जीवन की मर्यादा है। राम एक राजा नहीं— एक आदर्श हैं। उनके वनवास में त्याग है, युद्ध में धर्म है— और हर निर्णय में एक उच्च चेतना।

और फिर— महाभारत— सबसे बड़ा ग्रंथ, सबसे बड़ा आईना। यहाँ कोई केवल अच्छा नहीं, कोई केवल बुरा नहीं है। यहाँ सभी पात्र— अपनी इच्छाओं, दुर्बलताओं और संघर्ष के साथ साधारण मनुष्य हैं।

और जब युद्धभूमि में अर्जुन संशय के बादलों से घिरा होता है— तब भगवद्गीता के श्लोक— मनुष्य जीवन के हर संशय को दूर करते हैं।

"कर्म करो, फल की चिंता मत करो" ये शब्द नहीं— जीवन का ध्येय हैं।

इन ग्रंथों को पढ़ना अतीत को जानना नहीं, स्वयं को जानना है। यह यात्रा बाहर की नहीं— भीतर की है। एक ऐसी यात्रा, जो आत्मा को फिर से जीवंत कर देती है।


आज— जब हम तकनीक से घिरे हैं
, पर आत्मा से कटे हुए हैं— हमें फिर से इन्हीं ग्रंथों की ओर लौटना होगा।

इन ग्रंथों को पढ़ना अतीत को जानना नहीं, स्वयं से मिलना है। जब आप इन्हें पढ़ते हैं, तो आपको यह एहसास होता है कि प्रश्न बदल सकते हैं, पर उत्तर वही रहते हैं। तकनीक बदल सकती है, पर जीवन के आधारभूत मूल्य—धर्म, करुणा, सत्य, कर्तव्य—यही हमें मनुष्य बनाते हैं।

आज जब हम आधुनिकता की दौड़ में थके हुए हैं। सबका मन अशांत है और संबंध खोखले होते जा रहे हैं— ऐसे में इन ग्रंथों की ओर लौटना आत्मा को फिर से जीवन देने जैसा है। यह केवल अध्ययन नहीं, एक आंतरिक यात्रा है, जो हमें भीतर से समृद्ध करती है।

क्योंकि ये ग्रंथ प्राचीन समय की कहानियाँ भर नहीं है—बल्कि वे हमारे भीतर बसी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं, बस हमें उन्हें फिर से सुनने की आवश्यकता है।

हमारे प्राचीन ग्रंथ केवल बीते युग की कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि आज के जीवन को समझने की चाबी हैं। ये ग्रंथ हमें सिखाते हैं कि चुनौतियों का सामना कैसे करें, जीवन में संतुलन कैसे रखें और भीतर की शांति कैसे पाई जाए। भगवद्गीता हमें कर्म और विवेक का दर्शन देती है, रामायण हमें आदर्श जीवन की झलक दिखाती है और वेदउपनिषद आत्मा, ब्रह्म और सृष्टि के गूढ़ रहस्यों को सरलता से उजागर करते हैं।
लेकिन आज की पीढ़ी के लिए इन प्राचीन ग्रंथों की भाषा, संदर्भ और शैली एक दीवार बन गई है। इसी दीवार को तोड़ने के लिए Disha Publication आपके लिए सरल भाषा में, सुरुचिपूर्ण तीन पुस्तकें लेकर आया है
 
भगवद्गीता –  यह पुस्तक छोटे-छोटे अध्यायों और रोचक प्रसंगों में विभाजित है, ताकि विद्यार्थी भी आत्मा और कर्म के सिद्धांतों को सहजता से समझ सकें।

 रामायण यह जीवन मूल्यों और आदर्शों की कथा-आधारित प्रस्तुति है, जो हर उम्र के पाठकों को जोड़ती है।

वेद और उपनिषदइसमें जटिल विचारों को सरल कहानियों के ज़रिए प्रस्तुत किया गया है, जिससे गहराई भी बनी रहे और रुचि भी।
इन पुस्तकों के ज़रिए हम केवल प्राचीन ज्ञान की ओर लौटते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक चेतना को भी फिर से जीवित करते हैं।

 अब समय, केवल आगे बढ़ने का नहींअपनी जड़ों की ओर लौटने का भी है।

इसी उद्देश्य से Disha Publication आपके लिए सरल भाषा में, सुरुचिपूर्ण तीन पुस्तकें लेकर आया है –
 

भगवद्गीता: रोचक कहानियों के साथ –  यह पुस्तक छोटे-छोटे अध्यायों और रोचक प्रसंगों में विभाजित हैताकि विद्यार्थी भी आत्मा और कर्म के सिद्धांतों को सहजता से समझ सकें।

 रामायण: फॉर यंग माइंडस – यह जीवनमूल्यों और आदर्शों की कथा-आधारित प्रस्तुति हैजो हर उम्र के पाठकों को जोड़ती है।

वेद और उपनिषद: विद्यार्थियों के लिए – इसमें जटिल विचारों को सरल कहानियों के ज़रिए प्रस्तुत किया गया हैजिससे गहराई भी बनी रहे और रुचि भी।

इन पुस्तकों के ज़रिए हम न केवल ज्ञान की ओर लौटते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक चेतना को भी फिर से जीवित करते हैं।
अब समय, केवल आगे बढ़ने का नहीं – अपनी जड़ों की ओर लौटने का भी है।


 

RELATED ARTICLES

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Please note, comments must be approved before they are published